मूडीज ने कहा, 2020-21 में शून्य रह सकती है भारत की जीडीपी वृद्धि, धीमी वृद्धि का बढ़ रहा जोखिम

सांकेतिक तस्वीर Pixabay

वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने शुक्रवार को कहा कि वित्त वर्ष 2020-21 में भारत की आर्थिक वृद्धि शून्य रह सकती है। उसने कहा कि भारत की सावरेन रेटिंग का नकारात्मक परिदृश्य से उसकी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर पहले के मुकाबले काफी कम रहने के जोखिम को दर्शाता है।

एजेंसी ने कहा कि इसके साथ ही यह परिदृश्य आर्थिक व संस्थागत दिक्कतों को दूर करने के मामले में कमजोर नीतिगत प्रभावों का भी बताता है। मूडीज ने कहा कि नकारात्मक परिदृश्य यह भी बताता है कि निकट भविष्य में इसमें बेहतरी की संभावना भी नहीं है।

उसने कहा कि कोरोना वायरस महामारी के कारण ऊंचे सरकारी ऋण, कमजोर सामाजिक व भौतिक बुनियादी ढांचा तथा नाजुक वित्तीय क्षेत्र को आगे और दबाव का सामना करना पड़ सकता है।

मूडीज ने नवंबर 2019 में भारत की रेटिंग परिदृश्य स्थिर से घटाकर नकारात्मक कर दिया था। हालांकि, एजेंसी ने रेटिंग को बीएए2 पर बनाये रखा था। 'बीएए2' निवेश ग्रेड की रेटिंग है जिसमें हल्का रिण जोखिम होता है। यह रेटिंग कबाड, ग्रेड से दो पायदान ऊपर है।

मूडीज ने कहा कि भारत की क्रेडिट रेटिंग के नकारात्मक परिदृश्य से पता चलता है कि जीडीपी की वृद्धि दर पहले की तुलना में काफी कम रहने वाली है। इसके साथ ही यह आर्थिक व संस्थागत दिक्कतों को दूर करने के कमजोर नीतिगत प्रभावों को भी बताता है।

उसने 'भारत सरकार- बीएए2 नकारात्मक' शीर्षक से कहा, "यह कोरोनो वायरस महामारी के कारण उत्पन्न गहरे असर के संदर्भ में है। यह काफी समय से उपस्थित आर्थिक व संस्थागत कमजोरियों को दूर करने में सरकार तथा नीतियों के स्तर पर कम क्षमता का भी संकेत देता है। इसके कारण पहले से ही काफी उच्च स्तर का ऋण दबाव और बढ़ सकता है।''

मूडीज ने चेतावनी दी कि कोरोना वायरस महामारी से लगा झटका आर्थिक वृद्धि में पहले से ही कायम नरमी को और बढ़ा देगा। इसने राजकोषीय घाटे को कम करने की संभावनाओं को पहले भी कमजोर कर दिया है।

एजेंसी ने अपने नये पूर्वानुमान में कहा कि वित्त वर्ष 2020-21 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि शून्य रह सकती है। इसका अर्थ है कि देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की स्थिति इस वित्त वर्ष में सपाट रहेगी। एजेंसी ने हालांकि, वित्त वर्ष 2021-22 में वृद्धि दर के 6.6 प्रतिशत पर पहुंच जाने का अनुमान व्यक्त किया है।

विश्लेषक इस बात को लेकर सुनिश्चित हैं कि इस महामारी का देश की आर्थिक स्थिति पर बड़ा प्रभाव पड़ना तय है। मूडीज की स्थानीय इकाई इक्रा ने इस महामारी के कारण वृद्धि दर में दो प्रतिशत की गिरावट की आशंका व्यक्त की है। इस महामारी के कारण पूरा देश करीब दो महीने से लॉकडाउन की स्थिति में है।

सरकार ने मार्च में 1.7 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की थी। अनुमान लगाया जा रहा है कि सरकार एक और राहत पैकेज की घोषणा कर सकती है। एजेंसी ने इस बारे में कहा कि इन उपायों से भारत की आर्थिक नरमी के असर और अवधि को कम करने में मदद मिल सकती है।

हालांकि, ग्रामीण परिवारों में लंबे समय तक वित्तीय बदहाली, रोजगार सृजन में नरमी तथा वित्तीय संस्थानों व गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों (एनबीएफसी) के समक्ष ऋण संकट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

साभार : यह लेख मूल रूप से समाचार एजेंसी पीटीआई/भाषा द्वारा लिखा गया है.